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HEALTH : बवासीर, भगंदर से है परेशान तो ये उपाय अवश्य आजमाएं बीमारी होगी दूर

बवासीर के घरेलू इलाज

पानी का ज्यादा से ज्यादा सेवन करें

20ग्राम कालीमिर्च 10ग्राम जीरा 15ग्राम शर्करा या मिश्री को पीसकर चूर्ण बना लें और सुबह v रात को सोते समय पानी के साथ सेवन करे

10ग्राम अनार के छिलकों को पीसकर पाउडर बना कर 100 ग्राम दही के साथ सेवन करे

मुनक्का के १५ दाने साफ पानी में रात भर भिगोकर रखे और सुबह उनके बीज निकाल कर खूब चबाचबा कर खाए

आवलों को अच्छी तरह से पीसकर एक मिट्टी के बरतन में लेप कर देना चाहिए। फिर उस बर्तन में छाछ भरकर उस छाछ को रोगी को पिलाने से बवासीर में लाभ होता है।

बवासीर के मस्सों से अधिक खून के बहने में 3 से 8 ग्राम आंवले के चूर्ण का सेवन दही की मलाई के साथ दिन में 2-3 बार करना चाहिए।

सूखे आंवलों का चूर्ण 20 ग्राम लेकर 250 मिलीलीटर पानी में मिलाकर मिट्टी के बर्तन में रात भर भिगोकर रखें। दूसरे दिन सुबह उसे हाथों से मलकर छा
न लें तथा छने हुए पानी में 5 ग्राम चिरचिटा की जड़ का चूर्ण और 50 ग्राम मिश्री मिलाकर पीयें। इसको पीने से बवासीर कुछ दिनों में ही ठीक हो जाती है और मस्से सूखकर गिर जाते हैं।

सूखे आंवले को बारीक पीसकर प्रतिदिन सुबह-शाम 1 चम्मच दूध या छाछ में मिलाकर पीने से खूनी बवासीर ठीक होती है।

आंवले का बारीक चूर्ण 1 चम्मच, 1 कप मट्ठे के साथ 3 बार लें।

आंवले का चूर्ण एक चम्मच दही या मलाई के साथ दिन में तीन बार खायें।

सब्जी – पत्ता गोबी सुरण चिरायता

लेप लगाए – हिंग का लेप

जूस पिए – मुली का रस, अदरक का रस घी डालकर, नागर मोथा, नारियल पानी।

दूध में उबालकर छुवारो का प्रतिदिन सेवन करे

खाली पेट पपीता सेवन बवासीर दूर करता है

तुलसी अर्क का सेवन बवासीर में लाभप्रद है

त्रिफला कुटक और ढाक का प्रयोग बवासीर में लाभ प्रदान करता है

रटिंहया व नाइट्रिक एसिड का भी उपयोग बवासीर में फायदेमंद होता है

मस्से वाली बवासीर ( पाइल्स ) – होम्योपैथिक दवा

1) Calcarea Flour 6X
4-4 गोली चूसना है, दिन में तीन बार, खाने से आधा घंटा पहले लें ।

2) Acid Nitricum 30
2-2 बूंद जीभ पर, दिन में तीन बार, खाने से आधा घंटा पहले लें ।

– दोनों दवा के बीच में कम से कम 10 मिनट का अंतर रखें ।

बवासीर ( Piles ) – होम्योपैथिक दवा

1) Hamamelis Virginica Q
2) Paeonia Officinalis Q
3) Aesculus Hippocastanum Q

तीनों दवा 30ml का सील पैक लें, 100ml के खाली बोतल में तीनों दवा को अच्छे से मिलाकर रख लें ।
20 बूंद आधा कप पानी में मिलाकर पिए, दिन में तीन बार, खाने से आधा घंटा पहले ।

4) Bio Combination 17
4-4 गोली चूसना है, दिन में तीन बार, खाने से आधा घंटा पहले ।

– दोनों दवा के बीच में कम से कम 10 मिनट का अंतर रखें ।

– दवा और 100ml का खाली बोतल होम्योपैथिक दुकान पर मिलेगा ।

भगन्दर : पस्त होने की जरूरत नहीं क्षार चिकित्सा पद्धति द्वारा भगन्दर का इलाज

भगन्दर गुदा क्षेत्र में होने वाली एक ऐसी बीमारी है जिसमें गुदा द्वार के आस पास एक फुंसी या फोड़ा जैसा बन जाता है जो एक पाइपनुमा रास्ता बनाता हुआ गुदामार्ग या मलाशय में खुलता है। शल्य चिकित्सा के प्राचीन भारत के आचार्य सुश्रुत ने भगन्दर रोग की गणना आठ ऐसे रोगों में की है जिन्हें कठिनाई से ठीक किया जा सकता है। इन आठ रोगों को उन्होंने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ सुश्रुत संहिता में ‘अष्ठ महागदÓ कहा है।

भगन्दर कैसे बनता है?
गुदा-नलिका जो कि एक व्यस्क मानव में लगभग 4 से.मी. लम्बी होती है, के अन्दर कुछ ग्रंथियां होती हैं व इन्ही के पास कुछ सूक्ष्म गड्ढे जैसे होते है जिन्हें एनल क्रिप्ट कहते हैं; ऐसा माना जाता है कि इन क्रिप्ट में स्थानीय संक्रमण के कारण स्थानिक शोथ हो जाता है जो धीरे धीरे बढ़कर एक फुंसी या फोड़े के रूप में गुदा द्वार के आस पास किसी भी जगह दिखाई देता है। यह अपने आप फूट जाता है। गुदा के पास की त्वचा के जिस बिंदु पर यह फूटता है, उसे भगन्दर की बाहरी ओपनिंग कहते हैं।

भगन्दर के बारे में विशेष बात यह है कि अधिकाँश लोग इसे एक साधारण फोड़ा या बालतोड़ समझकर टालते रहते हैं, परन्तु वास्तविकता यह है कि जहाँ साधारण फुंसी या बालतोड़ पसीने की ग्रंथियों के इन्फेक्शन के कारण होता है, जो कि त्वचा में स्थित होती हैं; वहीँ भगन्दर की शुरुआत गुदा के अन्दर से होती है तथा इसका इन्फेक्शन एक पाइपनुमा रास्ता बनाता हुआ बाहर की ओर खुलता है। कभी कभी भगन्दर का फोड़ा तो बनता है, परन्तु वो बाहर अपने आप नहीं फूटता है। ऐसी अवस्था में सूजन काफी होती है और दर्द भी काफी होता है।

भगन्दर के लक्षण
गुदा के आस पास एक फुंसी या फोड़े का निकलना जिससे रुक-रुक कर मवाद (पस) निकलता है

कभी कभी इस फुंसी/फोड़े से गैस या मल भी निकलता है।

प्रभावित क्षेत्र में दर्द का होना

प्रभावित क्षेत्र में व आस पास खुजली होना

पीडि़त रोगी के मवाद के कारण कपडे अक्सर गंदे हो जाते हैं।

भगन्दर प्रकार
आचार्य सुश्रुत ने भगन्दर पीडिका और रास्ते की आकृति व वात पित्त कफ़ दोषों के अनुसार भगन्दर के निम्न 5 भेद बताएं हैं;

शतपोनक
उष्ट्रग्रीव
परिस्रावी
शम्बुकावृत्त
उन्मार्गी

आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के अनुसार भी फिश्चुला का कई प्रकार से वर्गीकरण किया गया है परन्तु चिकित्सा की दृष्टि से दो प्रकार का वर्गीकरण उपयोगी है;

लो-एनल : चिकित्सा की द्रष्टि से सरल माना जाता है।
हाई-एनल : चिकित्सा की दृष्टि से कठिन माना जाता है।

भगन्दर का निदान
चिकित्सक स्थानिक परीक्षण द्वारा भगन्दर का चेक-अप करते हैं तथा एक विशेष यन्त्र एषनी के द्वारा भगन्दर के रास्ते का पता किया जाता है।

आजकल एक विशेष एक्स रे जिसे फिस्टुलोग्राम कहते है, की सहायता से भगन्दर के ट्रैक का पता किया जाता है। इसके अतिरिक्त कभी-कभी एमआरआइ की सलाह भी चिकित्सक देते हैं।

आयुर्वेद क्षार सूत्र चिकित्सा
आयुर्वेद में एक विशेष शल्य प्रक्रिया जिसे क्षार सूत्र चिकित्सा कहते हैं, के द्वारा भगन्दर पूर्ण रूप से ठीक हो जाता है। इस विधि में एक औषधियुक्त सूत्र (धागे) को भगन्दर के ट्रैक में चिकित्सक द्वारा एक विशेष तकनीक से स्थापित कर दिया जाता है। क्षार सूत्र पर लगी औषधियां भगन्दर के ट्रैक को साफ़ करती हैं व एक नियंत्रित गति से इसे धीरे धीरे काटती हैं। इस विधि में चिकित्सक को प्रति सप्ताह पुराने सूत्र के स्थान पर नया सूत्र रखते है।

कारण
भगंदर होने के कई कारण हो सकते है। कुछ प्रमुख कारण निम्न प्रकार है-

गुदामार्ग की अस्वच्छता

लगातार लम्बे समय तक कब्ज बने रहना।

अत्यधिक साइकिल या घोड़े की सवारी करना।

बहुत अधिक समय तक कठोर, ठंडे गीले स्थान पर बैठना।

गुदामैथुन की प्रवृत्ति।

मलद्वार के पास उपस्थित कृमियों के उपद्रव के कारण।

गुदा में खुजली होने पर उसे नाखून आदि से खुरच देने के कारण बने घाव के फलस्वरूप।

गुदा में आघात लगने या कट – फट जाने पर।

गुदा मार्ग पर फोड़ा-फुंसी हों जाने पर।

गुदा मार्ग से किसी नुकीले वस्तु के प्रवेश कराने के उपरांत बने घाव से।

आयुर्वेदानुसार जब किसी भी कारण से वात और कफ प्रकुपित हो जाता है तो इस रोग के उत्पत्ति होती है।

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